बात करते है प्रकृति की इस कठोर प्रदर्शन की |
हम जाने - अनजाने प्रकृति को तहस - नहस करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़े | चाहे अंधा - धुंध पेड़ों की कटाई हो ,अनियंत्रित औद्योगिक कारखाने , यातायात के साधन हो या सुख - सुविधा वाले दैनिक जीवन में प्रयोग आने वाले संयत्र हो | हर तरफ प्रकृति को भरसक नष्ट किया | इसका कहीं न कहीं दुष्परिणाम तो दिखेगा ही | सभी देशों मे होड़ सी लगी है विकसित होने की अपना देश भला पीछे कैसे रह सकता | सड़के जो एक वाहन वाले थे उसे फोर लेंंन में जो फोर लेंंन में थे उसे एट लेंन में बदल जाना ही तो विकास है | आपने कभी यह तो सोचानहीं की जिन सड़कों के किनारे वर्षों से अरबों टन आक्सीजन का उत्पादन कर रहें थे ऐसे करोड़ों पेड़ों के एक साथ काटे जाने पर हमें किलोग्राम में आक्सीजन खरीदना पड़ सकता है | भाई हम क्यों सोचें हमें तो विकास चाहिए | पेड़ कटे तो कटे हमे नया शहर , नयी फैक्ट्री बनानी है क्यों हमें विकास चाहिए | अभी हाल में ही आकड़े आए की भारत में कारो की बिक्री में असर पड़ा | जब 4 लाख वाहन प्रतिवर्ष बाजार में आ रहे है तो उससे उत्पन्न प्रदूषण झेलने वाला मंगल से कोई आएगा क्या ?
नहीं | सब हम - आपको ही झेलना होगा |
समस्त आपदाओ का सार कुछ दिन बाद विभिन्न देशों के महान चिंतक , वैज्ञानिक विश्लेषण करके निकलेंगे लेकिन मित्रों एक सोच जो मेरे मस्तिष्क में है उसे आप सभी से साझा करना चाहूँगा की अभी वक्त है हम सब सुधर जाएं और सीधे प्रकृति से जुड़ जाए | छोड़िए सुख -सुविधा के तमाम उपकरण, R.O., AC, फ्रिट ,कूलर , मोटर वाहन , आदि और वृक्षारोपण कीजिए , ताजा स्वच्छ नल का जल पीजिए |

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