है छूट रही है मन आशा ,
अब किस्मत कौन बनाएगाजब कर्म हीन हो बैठ गए
तो ईश्वर भी क्या उठाएगा
मन आशा को चेतन्य रूप
जो लहू से अपने सीचा है
है वही वीर सच्चा मानव
इस धरती नहीं दूजा है |
उठ मानव तू क्यू बैठा है
क्या सोच रहा अपने मन में
ईश्वर ने तुझको ज्ञान दिया |
प्रेषक :- धीरेन्द्र कुमार वर्मा (नंदवंशी )

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